श्लोकसंख्या -1 – धृतराष्ट्र द्वारा सञ्जय से युद्ध के विवरण से सम्बन्धित प्रश्न।
श्लोकसंख्या -2 – पाण्डव सेना को देखकर दुर्योधन का द्रोणाचार्य के पास जाना ।
श्लोकसंख्या -3 – धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की गई विशाल पाण्डव सेना को देखने के लिये द्रोणाचार्य से दुर्योधन की प्रार्थना।
श्लोकसंख्या -4-6 – पाण्डव सेना के प्रमुख महारथियों का वर्णन।
श्लोकसंख्या -7 – अपनी सेना के प्रधान सेना-नायकों को जानने के लिये द्रोणाचार्य से दुर्योधन की प्रार्थना।
श्लोकसंख्या -8-9 – दुर्योधन द्वारा अपने पक्ष के प्रमुख वीरों के नाम का कथन एवं पराक्रम तथा युद्ध-कौशल का वर्णन।
श्लोकसंख्या -10 – दुर्योधन द्वारा पाण्डव सेना को आसानी से जीतने योग्य तथा अपनी सेना को अजेय बतलाना।
श्लोकसंख्या -11 – भीष्मपितामह की रक्षा करने के लिये दुर्योधन का सभी वीरों से अनुरोध।
श्लोकसंख्या -12 – दुर्योधन की प्रसन्नता के लिये भीष्मपितामह के द्वारा गरजकर शंख बजाना।
श्लोकसंख्या -13 – कौरव सेना में शंख आदि विभिन्न बाजों का बजना एवं उनका भयंकर शब्द होना।
श्लोकसंख्या -14-18 – श्रीकृष्ण, अर्जुन आदि पाण्डव सेना के समस्त विशिष्ट योद्धाओं द्वारा अपने-अपने शंखों का बजाया जाना।
श्लोकसंख्या -20-21 – धृतराष्ट के सम्बन्धियों को युद्ध के लिये तैयार देखकर अर्जुन का श्रीकृष्ण से अपना रथ दोनों सेनाओं के मध्य में खड़े करने के लिए कहना।
श्लोकसंख्या -22-23 – रथ को मध्य में ही खड़े रखने का संकेत करके दुर्योधन के हित चाहने वाले विपक्षी योद्धाओं को देखने की इच्छा प्रकट करना।
श्लोकसंख्या – 24-25 – श्रीकृष्ण द्वारा रथ को दोनों सेनाओं के मध्य में खड़ा करना तथा युद्ध के लिये इकट्ठा हुए सभी वीरों को देखने के लिये अर्जुन से कहना।
श्लोकसंख्या -26-27.1 – सेनाओं में स्थित गुरु आदि सम्बन्धियों को देखकर अर्जुन का व्याकुल होना तथा शोक प्रकट करना।