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Chapter 14 – गुणत्रयविभागयोग Shloka-25

Chapter-14_1.25

SHLOKA

मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते।।14.25।।

PADACHHED

मानापमानयो:_तुल्य:_तुल्यः, मित्रारि-पक्षयो:,
सर्वारम्भ-परित्यागी, गुणातीत:, स:, उच्यते ॥ २५ ॥

ANAVYA

(यः) मानापमानयो: तुल्य:, मित्रारिपक्षयो: तुल्य: (च)
सर्वारम्भपरित्यागी स: (पुरुषः) गुणातीत: उच्यते।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(यः) मानापमानयो: [(जो) मान और अपमान में], तुल्य: [सम है,], मित्रारिपक्षयो: [मित्र और वैरी के पक्ष में ((भी))], तुल्य: (च) [सम है (एवं)],
सर्वारम्भपरित्यागी [सम्पूर्ण आरम्भों ((में कर्तापन के अभिमान)) से रहित है,], स: (पुरुषः) [वह ((पुरुष))], गुणातीत: [गुणातीत], उच्यते [कहा जाता है।],

ANUVAAD

(जो) मान और अपमान में सम है, मित्र और वैरी के पक्ष में ((भी)) सम है (एवं)
सम्पूर्ण आरम्भों ((में कर्तापन के अभिमान)) से रहित है, वह ((पुरुष)) गुणातीत कहा जाता है।

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