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Chapter 14 – गुणत्रयविभागयोग Shloka-23

Chapter-14_1.23

SHLOKA

उदासीनवदासीनो गुणैर्यो न विचाल्यते।
गुणा वर्तन्त इत्येव योऽवतिष्ठति नेङ्गते।।14.23।।

PADACHHED

उदासीनवत्_आसीन:, गुणै:_य:, न, विचाल्यते,
गुणा:, वर्तन्ते, इति_एव, य:_अवतिष्ठति, न_इङ्गते ॥ २३ ॥

ANAVYA

य: उदासीनवत्‌ आसीन: गुणै: न विचाल्यते (च) गुणा: एव (गुणेषु) वर्तन्ते
इति (अवगच्छन्) य: अवतिष्ठति (च) न इङ्गते।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

य: [जो], उदासीनवत् [साक्षी के सदृश], आसीन: [स्थित हुआ], गुणै: [गुणों के द्वारा], न विचाल्यते (च) [विचलित नहीं किया जा सकता (और)], गुणा: एव (गुणेषु) [गुण ही (गुणों में)], वर्तन्ते [बरतते हैं।],
इति (अवगच्छन्) [ऐसा (समझता हुआ)], य: [जो ((सच्चिदानन्दघन परमात्मा में एकीभाव से))], अवतिष्ठति (च) [स्थित रहता है (एवं)], न इङ्गते [((उस स्थिति से कभी)) विचलित नहीं होता।],

ANUVAAD

जो साक्षी के सदृश स्थित हुआ गुणों के द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता (और) गुण ही (गुणों में) बरतते हैं।
ऐसा (समझता हुआ) जो ((सच्चिदानन्दघन परमात्मा में एकीभाव से)) स्थित रहता है (एवं) ((उस स्थिति से कभी)) विचलित नहीं होता।

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