|

Chapter 14 – गुणत्रयविभागयोग Shloka-22

Chapter-14_1.22

SHLOKA

श्रीभगवानुवाच -
प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव।
न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति।।14.22।।

PADACHHED

श्रीभगवान् उवाच -
प्रकाशम्‌, च, प्रवृत्तिम्, च, मोहम्_एव, च, पाण्डव,
न, द्वेष्टि, सम्प्रवृत्तानि, न, निवृत्तानि, काङ्क्षति ॥ २२ ॥

ANAVYA

श्रीभगवान् उवाच -
(हे) पाण्डव! (यः) प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहम्
एव न (तु) सम्प्रवृत्तानि द्वेष्टि च न निवृत्तानि काङ्क्षति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

श्रीभगवान् उवाच - [श्री भगवान् ने कहा -], (हे) पाण्डव! [हे अर्जुन!], {(यः) [जो पुरुष]}, प्रकाशम् [((सत्त्वगुण के कार्यरूप)) प्रकाश को], च [और], प्रवृत्तिम् [((रजोगुण के कार्यरूप)) प्रवृत्ति को], च [तथा], मोहम् [((तमोगुण के कार्यरूप)) मोह को],
एव [भी], न (तु) [न (तो)], सम्प्रवृत्तानि [प्रवृत्त होने पर ((उनसे))], द्वेष्टि [द्वेष करता है], च [और], न [न], निवृत्तानि [निवृत्त होने पर ((उनकी))], काङ्क्षति [आकांक्षा करता है।]',

ANUVAAD

श्री भगवान् ने कहा - हे अर्जुन! (जो) ((पुरुष)) ((सत्त्वगुण के कार्यरूप)) प्रकाश को और ((रजोगुण के कार्यरूप)) प्रवृत्ति को तथा ((तमोगुण के कार्यरूप)) मोह को
भी न (तो) प्रवृत्त होने पर ((उनसे)) द्वेष करता है और न निवृत्त होने पर ((उनकी)) आकांक्षा करता है।

Similar Posts

Leave a Reply