Chapter 14 – गुणत्रयविभागयोग Shloka-20
SHLOKA
गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्।
जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते।।14.20।।
जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते।।14.20।।
PADACHHED
गुणान्_एतान्_अतीत्य, त्रीन्_देही, देह-समुद्भवान्,
जन्म-मृत्यु-जरा-दु:खै:_विमुक्त:_अमृतम्_अश्नुते ॥ २० ॥
जन्म-मृत्यु-जरा-दु:खै:_विमुक्त:_अमृतम्_अश्नुते ॥ २० ॥
ANAVYA
(अयम्) देही देहसमुद्भवान् एतान् त्रीन् गुणान् अतीत्य
जन्ममृत्युजरादु:खै: विमुक्त: अमृतम् अश्नुते।
जन्ममृत्युजरादु:खै: विमुक्त: अमृतम् अश्नुते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(अयम्) देही [(यह) पुरुष], देहसमुद्भवान् [शरीर की उत्पत्ति के कारण रूप], एतान् [इन], त्रीन् [तीनों], गुणान् [गुणों को], अतीत्य [उल्लंघन करके],
जन्ममृत्युजरादु:खै: [जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और ((सब प्रकार के)) दु:खों से], विमुक्त: [मुक्त हुआ], अमृतम् [परमानन्द को], अश्नुते [प्राप्त होता है।],
जन्ममृत्युजरादु:खै: [जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और ((सब प्रकार के)) दु:खों से], विमुक्त: [मुक्त हुआ], अमृतम् [परमानन्द को], अश्नुते [प्राप्त होता है।],
ANUVAAD
(यह) पुरुष शरीर की उत्पत्ति के कारणरूप इन तीनों गुणों को उल्लंघन करके
जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और ((सब प्रकार के)) दु:खों से मुक्त हुआ परमानन्द को प्राप्त होता है।
जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और ((सब प्रकार के)) दु:खों से मुक्त हुआ परमानन्द को प्राप्त होता है।