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Chapter 14 – गुणत्रयविभागयोग Shloka-19

Chapter-14_1.19

SHLOKA

नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति।
गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति।।14.19।।

PADACHHED

न_अन्यम्‌, गुणेभ्य:, कर्तारम्‌, यदा, द्रष्टा_अनुपश्यति,
गुणेभ्य:_च, परम्‌, वेत्ति, मद्भावम्‌, स:_अधिगच्छति ॥ १९ ॥

ANAVYA

यदा द्रष्टा गुणेभ्य: अन्यं कर्तारं न अनुपश्यति
च गुणेभ्य: परं वेत्ति (तदा) स: मद्भावम्‌ अधिगच्छति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

यदा [जिस समय], द्रष्टा [द्रष्टा], गुणेभ्य: [((तीनों)) गुणों के अतिरिक्त], अन्यम् [अन्य किसी को], कर्तारम् [कर्ता], न [नहीं], अनुपश्यति [देखता],
च [और], गुणेभ्य: [((तीनों)) गुणों से], परम् [अत्यंत परे ((सच्चिदानन्दघन स्वरुप मुझ परमात्मा को))], वेत्ति [तत्व से जानता है,], {(तदा) [उस समय]}, स: [वह], मद्भावम् [मेरे स्वरूप को], अधिगच्छति [प्राप्त होता है।]

ANUVAAD

जिस समय द्रष्टा ((तीनों)) गुणों के अतिरिक्त अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता
और ((तीनों)) गुणों से अत्यंत परे ((सच्चिदानन्दघन स्वरुप मुझ परमात्मा को)) तत्व से जानता है, (उस समय) वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है।

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