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Chapter 14 – गुणत्रयविभागयोग Shloka-18

Chapter-14_1.18

SHLOKA

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः।।14.18।।

PADACHHED

ऊर्ध्वम्, गच्छन्ति, सत्त्व-स्था:, मध्ये, तिष्ठन्ति, राजसा:,
जघन्य-गुण-वृत्ति-स्था:, अध:, गच्छन्ति, तामसा: ॥ १८ ॥

ANAVYA

सत्त्वस्था: ऊर्ध्वं गच्छन्ति, राजसा: मध्ये (एव)
तिष्ठन्ति (च) जघन्यगुणवृत्तिस्था: तामसा: अध: गच्छन्ति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

सत्त्वस्था: [सत्त्वगुण में स्थित ((पुरुष))], ऊर्ध्वम् [((स्वर्गादि)) उच्च लोकों को], गच्छन्ति [जाते हैं;], राजसा: [((रजोगुण में स्थित)) राजस ((पुरुष))], मध्ये (एव) [मध्य में अर्थात् मनुष्य लोक में (ही)],
तिष्ठन्ति (च) [रहते हैं (और)], जघन्यगुणवृत्तिस्था: [((तमोगुण के कार्यरूप)) निद्रा, प्रमाद और आलस्यादि में स्थित], तामसा: [तामस ((पुरुष))], अध: [अधोगति को ((अर्थात् कीट, पशु आदि नीच योनियों को तथा नरकों को))], गच्छन्ति [प्राप्त होते हैं।]

ANUVAAD

सत्त्वगुण में स्थित ((पुरुष)) ((स्वर्गादि)) उच्च लोकों को जाते हैं; ((रजोगुण में स्थित)) राजस ((पुरुष)) मध्य में अर्थात् मनुष्य लोक में (ही)
रहते हैं (और) ((तमोगुण के कार्यरूप)) निद्रा, प्रमाद और आलस्यादि में स्थित तामस ((पुरुष)) अधोगति को ((अर्थात् कीट, पशु आदि नीच योनियों को तथा नरकों को)) प्राप्त होते हैं।

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