|

Chapter 14 – गुणत्रयविभागयोग Shloka-16

Chapter-14_1.16

SHLOKA

कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्त्विकं निर्मलं फलम्।
रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम्।।14.16।।

PADACHHED

कर्मण:, सुकृतस्य_आहु:, सात्त्विकम्‌, निर्मलम्‌, फलम्‌,
रजस:_तु, फलम्‌, दुःखम्_अज्ञानम्, तमस:, फलम् ‌॥ १६ ॥

ANAVYA

सुकृतस्य कर्मण: (तु) सात्त्विकं निर्मलं फलम्
आहु: तु रजस: फलं दुःखम् (च) तमस: फलम् अज्ञानम् (आहुः)।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

सुकृतस्य [श्रेष्ठ], कर्मण: (तु) [कर्म का (तो)], सात्त्विकम् [सात्त्विक अर्थात् सुख ((ज्ञान और वैराग्यादि))], निर्मलम् [निर्मल], फलम् [फल],
आहु: [कहा है;], तु [किन्तु], रजस: [राजस कर्म का], फलम् [फल], दुःखम् (च) [दु:ख (एवम्)], तमस: [तामस कर्म का], फलम् [फल], अज्ञानम् (आहुः) [अज्ञान (कहा है)।],

ANUVAAD

श्रेष्ठ कर्म का (तो) सात्त्विक अर्थात् सुख ((ज्ञान और वैराग्यादि)) निर्मल फल
कहा है; किन्तु राजस कर्म का फल दु:ख (एवम्) तामस कर्म का फल अज्ञान (कहा है)।

Similar Posts

Leave a Reply