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Chapter 12 – भक्तियोग Shloka-2

Chapter-12_1.2

SHLOKA

श्रीभगवानुवाच -
मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।
श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।।12.2।।

PADACHHED

श्रीभगवान् उवाच -
मयि_आवेश्य, मन:, ये, माम्‌, नित्य-युक्ता:, उपासते,
श्रद्धया, परया_उपेता:_ते, मे, युक्ततमा:, मता: ॥ २ ॥

ANAVYA

श्रीभगवान् उवाच -
मयि मन: आवेश्य नित्ययुक्ता: ये परया श्रद्धया उपेता:
मां उपासते ते मे युक्ततमा: मता:।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

श्रीभगवान् उवाच - [श्री भगवान् ने कहा -], मयि [मुझमें], मन: [मन को], आवेश्य [एकाग्र करके], नित्ययुक्ता: [निरन्तर ((मेरे भजन-ध्यान में)) लगे हुए], ये [जो ((भक्तजन))], परया [अतिशय श्रेष्ठ], श्रद्धया [श्रद्धा से], उपेता: [युक्त होकर],
माम् [मुझ ((सगुणरूप परमेश्वर)) को], उपासते [भजते हैं,], ते [वे], मे [मुझको], युक्ततमा: [योगियों में अति उत्तम योगी], मता: [मान्य हैं।],

ANUVAAD

श्री भगवान् ने कहा - मुझमें मन को एकाग्र करके निरन्तर ((मेरे भजन-ध्यान में)) लगे हुए जो ((भक्तजन)) अतिशय श्रेष्ठ श्रद्धा से युक्त होकर
मुझ ((सगुणरूप परमेश्वर)) को भजते हैं, वे मुझको योगियों में अति उत्तम योगी मान्य हैं।

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