SHLOKA
श्रीभगवानुवाच -
मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।
श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।।12.2।।
मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।
श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।।12.2।।
PADACHHED
श्रीभगवान् उवाच -
मयि_आवेश्य, मन:, ये, माम्, नित्य-युक्ता:, उपासते,
श्रद्धया, परया_उपेता:_ते, मे, युक्ततमा:, मता: ॥ २ ॥
मयि_आवेश्य, मन:, ये, माम्, नित्य-युक्ता:, उपासते,
श्रद्धया, परया_उपेता:_ते, मे, युक्ततमा:, मता: ॥ २ ॥
ANAVYA
श्रीभगवान् उवाच -
मयि मन: आवेश्य नित्ययुक्ता: ये परया श्रद्धया उपेता:
मां उपासते ते मे युक्ततमा: मता:।
मयि मन: आवेश्य नित्ययुक्ता: ये परया श्रद्धया उपेता:
मां उपासते ते मे युक्ततमा: मता:।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
श्रीभगवान् उवाच - [श्री भगवान् ने कहा -], मयि [मुझमें], मन: [मन को], आवेश्य [एकाग्र करके], नित्ययुक्ता: [निरन्तर ((मेरे भजन-ध्यान में)) लगे हुए], ये [जो ((भक्तजन))], परया [अतिशय श्रेष्ठ], श्रद्धया [श्रद्धा से], उपेता: [युक्त होकर],
माम् [मुझ ((सगुणरूप परमेश्वर)) को], उपासते [भजते हैं,], ते [वे], मे [मुझको], युक्ततमा: [योगियों में अति उत्तम योगी], मता: [मान्य हैं।],
माम् [मुझ ((सगुणरूप परमेश्वर)) को], उपासते [भजते हैं,], ते [वे], मे [मुझको], युक्ततमा: [योगियों में अति उत्तम योगी], मता: [मान्य हैं।],
ANUVAAD
श्री भगवान् ने कहा - मुझमें मन को एकाग्र करके निरन्तर ((मेरे भजन-ध्यान में)) लगे हुए जो ((भक्तजन)) अतिशय श्रेष्ठ श्रद्धा से युक्त होकर
मुझ ((सगुणरूप परमेश्वर)) को भजते हैं, वे मुझको योगियों में अति उत्तम योगी मान्य हैं।
मुझ ((सगुणरूप परमेश्वर)) को भजते हैं, वे मुझको योगियों में अति उत्तम योगी मान्य हैं।