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Chapter 12 – भक्तियोग Shloka-19

Chapter-12_1.19

SHLOKA

तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येनकेनचित्।
अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः।।12.19।।

PADACHHED

तुल्य-निन्‍दा-स्तुति:_मौनी, सन्तुष्ट:, येन_केनचित्‌,
अनिकेत:, स्थिर-मति:_भक्तिमान्_मे, प्रिय:, नर: ॥ १९ ॥

ANAVYA

(यः) तुल्यनिन्‍दास्तुति: मौनी (च) येन केनचित्‌ सन्तुष्ट:
अनिकेत: (च) (अस्ति) (सः) स्थिरमति: भक्तिमान् नर: मे प्रिय: (अस्ति)।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(यः) तुल्यनिन्दास्तुति: [(जो) निन्दा-स्तुति को समान समझने वाला,], मौनी (च) [मननशील (और)], येन केनचित् [जिस किसी प्रकार से ((भी शरीर का निर्वाह होने में))], सन्तुष्ट: (च) [(सदा ही) सन्तुष्ट],
अनिकेत: (च) (अस्ति) [(और) रहने के स्थान ((में ममता और आसक्ति)) से रहित है-, {(सः) [वह]}, स्थिरमति: [स्थिरबुद्धि], भक्तिमान् [भक्तिमान्], नर: [पुरुष], मे [मुझको], प्रिय: (अस्ति) [प्रिय है।],

ANUVAAD

(जो) निन्दा-स्तुति को समान समझने वाला, मननशील (और) जिस किसी प्रकार से ((भी शरीर का निर्वाह होने में सदा ही)) सन्तुष्ट (और)
रहने के स्थान ((में ममता और आसक्ति)) से रहित है- (वह) स्थिरबुद्धि भक्तिमान् पुरुष मुझको प्रिय है।

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