Chapter 12 – भक्तियोग Shloka-16
SHLOKA
अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।
PADACHHED
अनपेक्ष:, शुचि:_दक्ष:, उदासीन:, गत-व्यथ:,
सर्वारम्भ-परित्यागी, य:, मद्भक्त:, स:, मे, प्रिय: ॥ १६ ॥
सर्वारम्भ-परित्यागी, य:, मद्भक्त:, स:, मे, प्रिय: ॥ १६ ॥
ANAVYA
य: अनपेक्ष: शुचि: दक्ष: उदासीन: गतव्यथ: (च) (अस्ति),
स: सर्वारम्भपरित्यागी मद्भक्त: मे प्रिय: (अस्ति)।
स: सर्वारम्भपरित्यागी मद्भक्त: मे प्रिय: (अस्ति)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
य: [जो ((पुरुष))], अनपेक्ष: [आकांक्षा से रहित,], शुचि: [((बाहर-भीतर से)) शुद्ध,], दक्ष: [चतुर,], उदासीन: [पक्षपात से रहित], गतव्यथ: (च) (अस्ति) [(और) दुःखों से छूटा हुआ है],
स: [वह], सर्वारम्भपरित्यागी [सभी आरम्भों का त्यागी], मद्भक्त: [मेरा भक्त], मे [मुझको], प्रिय: [प्रिय है।],
स: [वह], सर्वारम्भपरित्यागी [सभी आरम्भों का त्यागी], मद्भक्त: [मेरा भक्त], मे [मुझको], प्रिय: [प्रिय है।],
ANUVAAD
जो ((पुरुष)) आकांक्षा से रहित, ((बाहर-भीतर से)) शुद्ध, चतुर, पक्षपात से रहित (और) दुःखों से छूटा हुआ है
वह सभी आरम्भों का त्यागी मेरा भक्त मुझको प्रिय है।
वह सभी आरम्भों का त्यागी मेरा भक्त मुझको प्रिय है।