Chapter 12 – भक्तियोग Shloka-15
SHLOKA
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः।।12.15।।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः।।12.15।।
PADACHHED
यस्मात्_न_उद्विजते, लोक:, लोकात्_न_उद्विजते, च, यः,
हर्षामर्ष-भयोद्वेगै:_मुक्त:, य:, स:, च, मे, प्रिय: ॥ १५ ॥
हर्षामर्ष-भयोद्वेगै:_मुक्त:, य:, स:, च, मे, प्रिय: ॥ १५ ॥
ANAVYA
यस्मात् लोक: न उद्विजते च य: लोकात् न उद्विजते
च य: हर्षामर्षभयोद्वेगै: मुक्त: (वर्तते) स: मे प्रिय: (अस्ति)।
च य: हर्षामर्षभयोद्वेगै: मुक्त: (वर्तते) स: मे प्रिय: (अस्ति)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
यस्मात् [जिससे], लोक: [((कोई भी)) जीव], न उद्विजते [उद्वेग को प्राप्त नहीं होता], च [और], य: [जो ((स्वयं भी))], लोकात् [(किसी) जीव से], न उद्विजते [उद्वेग को प्राप्त नहीं होता],
च [तथा], य: [जो], हर्षामर्षभयोद्वेगै: [हर्ष, अमर्ष भय और उद्वेगादि से], मुक्त: (वर्तते) [रहित है-], स: [वह ((भक्त))], मे [मुझको], प्रिय: (अस्ति) [प्रिय है।],
च [तथा], य: [जो], हर्षामर्षभयोद्वेगै: [हर्ष, अमर्ष भय और उद्वेगादि से], मुक्त: (वर्तते) [रहित है-], स: [वह ((भक्त))], मे [मुझको], प्रिय: (अस्ति) [प्रिय है।],
ANUVAAD
जिससे ((कोई भी)) जीव उद्वेग को प्राप्त नहीं होता और जो ((स्वयं भी किसी)) जीव से उद्वेग को प्राप्त नहीं होता
तथा जो हर्ष, अमर्ष भय और उद्वेगादि से रहित है- वह ((भक्त)) मुझको प्रिय है।
तथा जो हर्ष, अमर्ष भय और उद्वेगादि से रहित है- वह ((भक्त)) मुझको प्रिय है।