Gita Chapter-9 Shloka-8

Chapter-9_1.8

SHLOKA

प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः।
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्।।9.8।।

PADACHHED

प्रकृतिम्‌, स्वाम्_अवष्टभ्य, विसृजामि, पुन:, पुन:,
भूत-ग्रामम्_इमम्, कृत्स्नम्_अवशम्, प्रकृते:_वशात्‌ ॥ ८ ॥

ANAVYA

स्वां प्रकृतिम् अवष्टभ्य प्रकृते: वशात् अवशम्
इमं कृत्स्नं भूतग्रामं पुन: पुन: विसृजामि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

स्वाम् [अपनी], प्रकृतिम् [प्रकृति को], अवष्टभ्य [वश में करके], प्रकृते: [स्वभाव के], वशात् [बल से], अवशम् [अस्वतन्त्र हुए],
इमम् [इस], कृत्स्नम् [सम्पूर्ण], भूतग्रामम् [भूतसमुदाय को], पुन: पुन: [बार-बार ((उनके कर्मों के अनुसार))], विसृजामि [रचता हूँ।],

ANUVAAD

अपनी प्रकृति को वश में करके स्वभाव के बल से अस्वतन्त्र हुए
इस सम्पूर्ण भूतसमुदाय को बार-बार ((उनके कर्मों के अनुसार)) रचता हूँ।

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