Chapter 9 – राजविद्याराजगुह्ययोग Shloka-6

Chapter-9_1.6

SHLOKA

यथाऽऽकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय।।9.6।।

PADACHHED

यथा_आकाश-स्थित:, नित्यम्‌, वायु:, सर्वत्रग:, महान्‌,
तथा, सर्वाणि, भूतानि, मत्स्थानि_इति_उपधारय ॥ ६ ॥

ANAVYA

यथा सर्वत्रग: महान् वायु: नित्यम् आकाशस्थित:
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानि इति उपधारय।

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यथा [जैसे ((आकाश से उत्पन्न))], सर्वत्रग: [सर्वत्र विचरने वाला], महान् [महान्], वायु: [वायु], नित्यम् [सदा], आकाशस्थित: [आकाश में ही स्थित है,],
तथा [वैसे ही ((मेरे संकल्पद्वारा उत्पन्न होने से))], सर्वाणि [सम्पूर्ण], भूतानि [भूत], मत्स्थानि [मुझमें स्थित हैं,], इति [ऐसा], उपधारय [जानो।],

ANUVAAD

जैसे ((आकाश से उत्पन्न)) सर्वत्र विचरने वाला महान् वायु सदा आकाश में ही स्थित है,
वैसे ही ((मेरे संकल्पद्वारा उत्पन्न होने से)) सम्पूर्ण भूत मुझ में स्थित हैं, ऐसा जानो।

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