Chapter 9 – राजविद्याराजगुह्ययोग Shloka-5

Chapter-9_1.5

SHLOKA

न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्।
भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः।।9.5।।

PADACHHED

न, च, मत्स्थानि, भूतानि, पश्य, मे, योगम्_ऐश्वरम्‌,
भूत-भृत्_न, च, भूत-स्थ:, मम_आत्मा, भूत-भावन: ॥ ५ ॥

ANAVYA

(तानि) भूतानि मत्स्थानि न (वर्तन्ते), (किंतु) मे ऐश्वरं योगं पश्य; भूतभृत्‌
च भूतभावन: च मम आत्मा (वस्तुतः) भूतस्थ: न (वर्तते)।

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(तानि) भूतानि [(वे) सब भूत], मत्स्थानि [मुझमें स्थित], न (वर्तन्ते) [नहीं हैं;], {(किंतु) [किन्तु]}, मे [मेरी], ऐश्वरम् [ईश्वरीय], योगम् [योगशक्ति को], पश्य [देखो (कि)], भूतभृत् [भूतों का धारण-पोषण करने वाला],
च [और], भूतभावन: [भूतों को उत्पन्न करने वाला], च [भी], मम [मेरा], आत्मा [आत्मा], {(वस्तुतः) [वास्तव में]}, भूतस्थ: [भूतों में स्थित], न (वर्तते) [नहीं है।],

ANUVAAD

(वे) सब भूत मुझमें स्थित नहीं हैं; (किन्तु) मेरी ईश्वरीय योगशक्ति को देखो (कि) भूतों का धारण-पोषण करने वाला
और भूतों को उत्पन्न करने वाला भी मेरा आत्मा (वास्तव में) भूतों में स्थित नहीं है।

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