Chapter 9 – राजविद्याराजगुह्ययोग Shloka-32

Chapter-9_1.32

SHLOKA

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्।।9.32।।

PADACHHED

माम्, हि, पार्थ, व्यपाश्रित्य, ये_अपि, स्यु:, पाप-योनय:,
स्त्रिय:, वैश्या:_तथा शूद्रा:_ते_अपि, यान्ति, पराम्, गतिम् ॥ ३२ ॥

ANAVYA

हि (हे) पार्थ! स्त्रिय: वैश्या: शूद्रा: तथा पापयोनय: ये
अपि स्युः ते अपि मां व्यपाश्रित्य परां गतिं (एव) यान्ति।

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हि [क्योंकि], (हे) पार्थ! [हे अर्जुन!], स्त्रिय: [स्त्री,], वैश्या: [वैश्य,], शूद्रा: [शूद्र], तथा [तथा], पापयोनय: [पापयोनि-चाण्डाल आदि], ये [जो (कोई)],
अपि [भी], स्युः [हो,], ते [वे], अपि [भी], माम् [मेरी], व्यपाश्रित्य [शरण होकर], पराम् [परम], गतिम् (एव) [गति को (ही)], यान्ति [प्राप्त होते हैं।],

ANUVAAD

क्योंकि हे अर्जुन! स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पापयोनि-चाण्डाल आदि जो (कोई)
भी हो, वे भी मेरी शरण होकर परम गति को (ही) प्राप्त होते हैं।

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