SHLOKA
किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्।।9.33।।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्।।9.33।।
PADACHHED
किम्, पुन:_ब्राह्मणा:, पुण्या:, भक्ता:, राजर्षय:_तथा,
अनित्यम्_असुखम्, लोकम्_इमम्, प्राप्य, भजस्व, माम् ॥ ३३ ॥
अनित्यम्_असुखम्, लोकम्_इमम्, प्राप्य, भजस्व, माम् ॥ ३३ ॥
ANAVYA
पुनः किं (ये) पुण्या: ब्राह्मणा: तथा राजर्षय: भक्ता: (सन्ति),
(अतः) (त्वम्) असुखम् अनित्यम् (च) इमं लोकं प्राप्य मां भजस्व।
(अतः) (त्वम्) असुखम् अनित्यम् (च) इमं लोकं प्राप्य मां भजस्व।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
पुनः [फिर ((इसमें तो कहना ही))], किम् [क्या है,], {(ये) [जो]}, पुण्या: [पुण्यशील], ब्राह्मणा: [ब्राह्मण], तथा [तथा], राजर्षय: [राजर्षि], भक्ता: (सन्ति) [भक्तजन ((मेरी शरण होकर परमगति को प्राप्त होते)) हैं।], {(अतः) [इसलिये]}, {(त्वम्) [तुम]},
असुखम् [सुख से रहित], अनित्यम् (च) [(और) क्षणभंगुर], इमम् [इस], लोकम् [मनुष्य शरीर को], प्राप्य [प्राप्त होकर (निरन्तर)], माम् [मेरा ((ही))], भजस्व [भजन करो।],
असुखम् [सुख से रहित], अनित्यम् (च) [(और) क्षणभंगुर], इमम् [इस], लोकम् [मनुष्य शरीर को], प्राप्य [प्राप्त होकर (निरन्तर)], माम् [मेरा ((ही))], भजस्व [भजन करो।],
ANUVAAD
फिर ((इसमें तो कहना ही)) क्या है, (जो) पुण्यशील ब्राह्मण तथा राजर्षि भक्तजन ((मेरी शरण होकर परमगति को प्राप्त होते)) हैं। (इसलिये) (तुम)
सुख से रहित (और) क्षणभंगुर इस मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर ((निरन्तर)) मेरा ((ही)) भजन करो।
सुख से रहित (और) क्षणभंगुर इस मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर ((निरन्तर)) मेरा ((ही)) भजन करो।