Chapter 9 – राजविद्याराजगुह्ययोग Shloka-26

Chapter-9_1.26

SHLOKA

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।9.26।।

PADACHHED

पत्रम्, पुष्पम्, फलम्‌, तोयम्‌, य:, मे, भक्त्या, प्रयच्छति,
तत्_अहम्‌, भक्त्युपहृतम्_अश्नामि, प्रयतात्मन: ॥ २६ ॥

ANAVYA

य: मे भक्त्या पत्रं पुष्पं फलं तोयं प्रयच्छति, (तस्य) प्रयतात्मन:
भक्त्युपहृतं तत्‌ अहम्‌ अश्नामि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

य: [जो ((कोई भक्त))], मे [मेरे लिये], भक्त्या [भक्तिपूर्वक], पत्रम् [पत्र,], पुष्पम्, [फूल,], फलम् [फल,], तोयम् [जल ((आदि))], प्रयच्छति [अर्पण करता है,], (तस्य) प्रयतात्मन: [(उस) शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का],
भक्त्युपहृतम् [प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ], तत् [वह ((पत्र-पुष्पादि))], अहम् [मैं ((सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीति सहित))], अश्नामि [खाता हूँ।],

ANUVAAD

जो ((कोई भक्त)) मेरे लिये भक्तिपूर्वक पत्र, फूल, फल, जल ((आदि)) अर्पण करता है, (उस) शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का
प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह ((पत्र-पुष्पादि)) मैं ((सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीति सहित)) खाता हूँ।

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