Chapter 9 – राजविद्याराजगुह्ययोग Shloka-18

Chapter-9_1.18

SHLOKA

गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्।
प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्।।9.18।।

PADACHHED

गति:_भर्ता, प्रभु:, साक्षी, निवास:, शरणम्‌, सुहृत्‌,
प्रभव:, प्रलय:, स्थानम्‌, निधानम्‌, बीजम्_अव्ययम्‌ ॥ १८ ॥

ANAVYA

गति: भर्ता प्रभु: साक्षी निवास: शरणं
सुहृत्‌ प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानम् (च) अव्ययम् बीजम्‌ (अपि) (अहम्) (एव) (अस्मि)।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

गति: [प्राप्त होने योग्य परमधाम,], भर्ता [भरण-पोषण करने वाला,], प्रभु: [सब का स्वामी,], साक्षी [शुभ-अशुभ को देखने वाला,], निवास: [((सबका)) वासस्थान,], शरणम् [शरण लेने योग्य,],
सुहृत् [प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला], प्रभव: प्रलय: [(सबकी) उत्पत्ति-प्रलय का हेतु,], स्थानम् [स्थिति का आधार,], निधानम् (च) [आश्रय (और)], अव्ययम् [अविनाशी], बीजम् (अपि) [कारण (भी)], {(अहम्) (एव) (अस्मि) [मैं ही हूँ।]},

ANUVAAD

प्राप्त होने योग्य परमधाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभ-अशुभ को देखने वाला, ((सबका)) वासस्थान, शरण लेने योग्य,
प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, ((सबकी)) उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, आश्रय (और) अविनाशी कारण (भी) (मैं ही हूँ)।

Leave a Reply