Chapter 9 – राजविद्याराजगुह्ययोग Shloka-17

Chapter-9_1.17

SHLOKA

पिताऽहमस्य जगतो माता धाता पितामहः।
वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक् साम यजुरेव च।।9.17।।

PADACHHED

पिता_अहम्_अस्य, जगत:, माता, धाता, पितामह:,
वेद्यम्, पवित्रम्_ओङ्कार:, ऋक्, साम, यजु:_एव, च ॥ १७ ॥

ANAVYA

अस्य जगत: धाता पिता माता पितामह:
वेद्यं पवित्रम् ओङ्कार: (च) ऋक् साम च यजु: (अपि) अहम्‌ एव (अस्मि)।

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अस्य [इस], जगत: [सम्पूर्ण जगत् का], धाता [धाता अर्थात् धारण करने वाला एवं कर्मो के फल को देने वाला], पिता [पिता,], माता [माता,], पितामह: [पितामह,],
वेद्यम् [जानने योग्य], पवित्रम् [पवित्र], ओङ्कार: (च) [ॐकार (तथा)], ऋक् [ऋग्वेद], साम [सामवेद], च [और], यजु: (अपि) [यजुर्वेद (भी)], अहम् [मैं], एव (अस्मि) [ही हूँ।]

ANUVAAD

इस सम्पूर्ण जगत्‌ का धाता अर्थात्‌ धारण करने वाला एवं कर्मो के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह,
जानने योग्य पवित्र ॐकार (तथा) ऋग्वेद सामवेद और यजुर्वेद (भी) मैं ही हूँ।

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