Chapter 9 – राजविद्याराजगुह्ययोग Shloka-11
SHLOKA
अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्।।9.11।।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्।।9.11।।
PADACHHED
अवजानन्ति, माम्, मूढा:, मानुषीम्, तनुम्_आश्रितम्,
परम्, भावम्_अजानन्त:, मम, भूत-महेश्वरम् ॥ ११ ॥
परम्, भावम्_अजानन्त:, मम, भूत-महेश्वरम् ॥ ११ ॥
ANAVYA
मम परं भावम् अजानन्त: मूढ़ा: मानुषीं तनुम् आश्रितं मां
भूतमहेश्वरम् अवजानन्ति।
भूतमहेश्वरम् अवजानन्ति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
मम [मेरे], परम् [परम], भावम् [भाव को], अजानन्त: [न जानने वाले], मूढ़ा: [मूर्ख लोग], मानुषीम् [मनुष्य का], तनुम् [शरीर], आश्रितम् [धारण करने वाले], माम् [मुझ],
भूतमहेश्वरम् [सम्पूर्ण भूतों के महान् ईश्वर को], अवजानन्ति [तुच्छ समझते हैं अर्थात् अपने योगमाया से संसार के उद्धार के लिये मनुष्यरूप में विचरते हुए मुझ परमेश्वर को साधारण मनुष्य मानते हैं।],
भूतमहेश्वरम् [सम्पूर्ण भूतों के महान् ईश्वर को], अवजानन्ति [तुच्छ समझते हैं अर्थात् अपने योगमाया से संसार के उद्धार के लिये मनुष्यरूप में विचरते हुए मुझ परमेश्वर को साधारण मनुष्य मानते हैं।],
ANUVAAD
मेरे परम भाव को न जानने वाले मूर्ख लोग मनुष्य का शरीर धारण करने वाले मुझ
सम्पूर्ण भूतों के महान् ईश्वर को तुच्छ समझते हैं अर्थात् अपने योगमाया से संसार के उद्धार के लिये मनुष्यरूप में विचरते हुए मुझ परमेश्वर को साधारण मनुष्य मानते हैं।
सम्पूर्ण भूतों के महान् ईश्वर को तुच्छ समझते हैं अर्थात् अपने योगमाया से संसार के उद्धार के लिये मनुष्यरूप में विचरते हुए मुझ परमेश्वर को साधारण मनुष्य मानते हैं।