Chapter 8 – तारकब्रह्मयोग/अक्षरब्रह्मयोग Shloka-22
SHLOKA
पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया।
यस्यान्तःस्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम्।।8.22।।
यस्यान्तःस्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम्।।8.22।।
PADACHHED
पुरुष:, स:, पर:, पार्थ, भक्त्या, लभ्य:_तु_अनन्यया,
यस्य_अन्त:स्थानि, भूतानि, येन, सर्वम्_इदम्, ततम् ॥ २२ ॥
यस्य_अन्त:स्थानि, भूतानि, येन, सर्वम्_इदम्, ततम् ॥ २२ ॥
ANAVYA
(हे) पार्थ! यस्य अन्तःस्थानि भूतानि (सन्ति), (च) येन इदं सर्वं ततम्,
स: पर: पुरुष: तु अनन्यया भक्त्या (एव) लभ्य:।
स: पर: पुरुष: तु अनन्यया भक्त्या (एव) लभ्य:।
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(हे) पार्थ! [हे पार्थ!], यस्य [जिस ((परमात्मा)) के], अन्तःस्थानि [अन्तर्गत], भूतानि (सन्ति) [सम्पूर्ण भूत हैं], {(च) [और]}, येन [जिस ((सच्चिदानन्दघन परमात्मा)) से], इदम् [यह], सर्वम् [समस्त ((जगत्))], ततम् [परिपूर्ण है,],
स: [वह ((सनातन अव्यक्त))], पर: [परम], पुरुष: [पुरुष], तु [तो], अनन्यया [अनन्य], भक्त्या (एव) [भक्ति से (ही)], लभ्य: [प्राप्त होने योग्य है।],
स: [वह ((सनातन अव्यक्त))], पर: [परम], पुरुष: [पुरुष], तु [तो], अनन्यया [अनन्य], भक्त्या (एव) [भक्ति से (ही)], लभ्य: [प्राप्त होने योग्य है।],
ANUVAAD
हे पार्थ! जिस ((परमात्मा के)) अन्तर्गत सम्पूर्ण भूत हैं (और) जिस ((सच्चिदानन्दघन परमात्मा)) से यह समस्त ((जगत्)) परिपूर्ण है,
वह ((सनातन अव्यक्त)) परम पुरुष तो अनन्य भक्ति से (ही) प्राप्त होने योग्य है।
वह ((सनातन अव्यक्त)) परम पुरुष तो अनन्य भक्ति से (ही) प्राप्त होने योग्य है।