Chapter 8 – तारकब्रह्मयोग/अक्षरब्रह्मयोग Shloka-21
SHLOKA
अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।8.21।।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।8.21।।
PADACHHED
अव्यक्त:_अक्षर:, इति_उक्त:_तम्, आहु:, परमाम्, गतिम्,
यम्, प्राप्य, न, निवर्तन्ते, तत्_धाम, परमम्, मम ॥ २१ ॥
यम्, प्राप्य, न, निवर्तन्ते, तत्_धाम, परमम्, मम ॥ २१ ॥
ANAVYA
(यः) अव्यक्त: अक्षर: इति उक्त:, तं परमां गतिम् आहु: (च)
यं प्राप्य (जनः) न निवर्तन्ते तत् मम परमं धाम (वर्तते)।
यं प्राप्य (जनः) न निवर्तन्ते तत् मम परमं धाम (वर्तते)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
{(यः) [जो]} अव्यक्त: [अव्यक्त], "अक्षर: [अक्षर]", इति [इस ((नाम से))], उक्त: [कहा गया है,], तम् [उसी ((अक्षर नामक अव्यक्तभाव को))], परमाम् गतिम् [परमगति], आहु: [कहते हैं,], {(च) [तथा]},
यम् [जिस ((सनातन अव्यक्तभाव)) को], प्राप्य (जनः) [प्राप्त होकर (मनुष्य)], न निवर्तन्ते [वापस नहीं आते,], तत् [वह], मम [मेरा], परमम् [परम], धाम (वर्तते) [धाम है।]'
यम् [जिस ((सनातन अव्यक्तभाव)) को], प्राप्य (जनः) [प्राप्त होकर (मनुष्य)], न निवर्तन्ते [वापस नहीं आते,], तत् [वह], मम [मेरा], परमम् [परम], धाम (वर्तते) [धाम है।]'
ANUVAAD
(जो) अव्यक्त अक्षर इस ((नाम से)) कहा गया है, उसी ((अक्षर नामक अव्यक्तभाव को)) परमगति कहते हैं, (तथा)
जिस ((सनातन अव्यक्तभाव)) को प्राप्त होकर (मनुष्य) वापस नहीं आते, वह मेरा परम धाम है।
जिस ((सनातन अव्यक्तभाव)) को प्राप्त होकर (मनुष्य) वापस नहीं आते, वह मेरा परम धाम है।