|

Chapter 8 – तारकब्रह्मयोग/अक्षरब्रह्मयोग Shloka-20

Chapter-8_1.20

SHLOKA

परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति।।8.20।।

PADACHHED

पर:_तस्मात्_तु, भाव:_अन्य:_अव्यक्त:_अव्यक्तात्_सनातन:,
य:, स:, सर्वेषु, भूतेषु, नश्यत्सु, न, विनश्यति ॥ २० ॥

ANAVYA

तु तस्मात्‌ अव्यक्तात् (अपि) पर: अन्य: य:
सनातन: अव्यक्त: भाव: (अस्ति), स: सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु (अपि) न विनश्यति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

तु [परन्तु], तस्मात् [उस], अव्यक्तात् (अपि) [अव्यक्त से (भी)], पर: [((अति)) परे], अन्य: [दूसरा अर्थात् विलक्षण], य: [जो],
सनातन: [सनातन], अव्यक्त: [अव्यक्त], भाव: (अस्ति) [भाव है;], स: [वह ((परम दिव्य पुरुष))], सर्वेषु [सब], भूतेषु [भूतों के], नश्यत्सु (अपि) [नष्ट होने पर (भी)], न विनश्यति [नष्ट नहीं होता।],

ANUVAAD

परन्तु उस अव्यक्त से (भी) ((अति)) परे दूसरा अर्थात्‌ विलक्षण जो
सनातन अव्यक्त भाव है; वह ((परम दिव्य पुरुष)) सब भूतों के नष्ट होने पर (भी) नष्ट नहीं होता।

Similar Posts

Leave a Reply