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Chapter 8 – तारकब्रह्मयोग/अक्षरब्रह्मयोग Shloka-17

Chapter-8_1.17

SHLOKA

सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः।
रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः।।8.17।।

PADACHHED

सहस्त्र-युग-पर्यन्तम्_अह:_यत्_ब्रह्मण:, विदु:,
रात्रिम्, युग-सहस्त्रान्ताम्‌, ते_अहो-रात्र-विद:, जना: ॥ १७ ॥

ANAVYA

ब्रह्मण: यत्‌ अह: (अस्ति), सहस्त्रयुगपर्यन्तं रात्रिं (च) युगसहस्त्रान्तां
(ये) विदु:, ते जना: अहोरात्रविद: (सन्ति)।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

ब्रह्मण: [ब्रह्मा का], यत् [जो], अह: (अस्ति) [एक दिन है, ((उसको))], सहस्त्रयुगपर्यन्तम् [एक हजार चतुर्युगी तक की अवधि वाला], (च) रात्रिम् [(और) रात्रि को ((भी))], युगसहस्त्रान्ताम् [एक हजार चतुर्युगी तक की अवधि वाली],
{(ये) [जो ((पुरुष))]}, विदु: [((तत्त्व से)) जानते हैं,], ते [वे], जना: [((योगी)) लोग], अहोरात्रविद: (सन्ति) [काल के तत्त्व को जानने वाले हैं।],

ANUVAAD

ब्रह्मा का जो एक दिन है, ((उसको)) एक हजार चतुर्युगी तक की अवधि वाला (और) रात्रि को ((भी)) एक हजार चतुर्युगी तक की अवधि वाली
(जो) ((पुरुष)) ((तत्त्व से)) जानते हैं, वे ((योगी)) लोग काल के तत्त्व को जानने वाले हैं।

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