Chapter 8 – तारकब्रह्मयोग/अक्षरब्रह्मयोग Shloka-16
SHLOKA
आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते।।8.16।।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते।।8.16।।
PADACHHED
आब्रह्म-भुवनात्_लोका:, पुनरावर्तिन:_अर्जुन,
माम्_उपेत्य, तु, कौन्तेय, पुनर्जन्म, न, विद्यते ॥ १६ ॥
माम्_उपेत्य, तु, कौन्तेय, पुनर्जन्म, न, विद्यते ॥ १६ ॥
ANAVYA
(हे) अर्जुन! आब्रह्मभुवनात् लोका: पुनरावर्तिन: (सन्ति), तु (हे) कौन्तेय!
माम् उपेत्य पुनर्जन्म न विद्यते।
माम् उपेत्य पुनर्जन्म न विद्यते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) अर्जुन! [हे अर्जुन!], आब्रह्मभुवनात् [ब्रह्मलोकपर्यन्त], लोका: [सब लोक], पुनरावर्तिन: (सन्ति) [पुनरावर्ती हैं,], तु [परंतु], (हे) कौन्तेय! [हे कुन्तीपुत्र!],
माम् [मुझको], उपेत्य [प्राप्त होकर], पुनर्जन्म [पुनर्जन्म], न [नहीं], विद्यते [होता है; ((क्योंकि मै कालातीत हूँ और ये सब ब्रह्मादि के लोक काल के द्वारा सीमित होने से अनित्य है।))]
माम् [मुझको], उपेत्य [प्राप्त होकर], पुनर्जन्म [पुनर्जन्म], न [नहीं], विद्यते [होता है; ((क्योंकि मै कालातीत हूँ और ये सब ब्रह्मादि के लोक काल के द्वारा सीमित होने से अनित्य है।))]
ANUVAAD
हे अर्जुन! ब्रह्मलोकपर्यन्त सब लोक पुनरावर्ती हैं, परंतु हे कुन्तीपुत्र!
मुझको प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता है। ((क्योंकि मै कालातीत हूँ और ये सब ब्रह्मादि के लोक काल के द्वारा सीमित होने से अनित्य है।))
मुझको प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता है। ((क्योंकि मै कालातीत हूँ और ये सब ब्रह्मादि के लोक काल के द्वारा सीमित होने से अनित्य है।))