Chapter 7 – ज्ञानविज्ञानयोग Shloka-25
SHLOKA
नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्।।7.25।।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्।।7.25।।
PADACHHED
न_अहम्, प्रकाश:, सर्वस्य, योग-माया-समावृत:,
मूढ:_अयम्, न_अभिजानाति, लोक:, माम्_अजम्_अव्ययम् ॥ २५ ॥
मूढ:_अयम्, न_अभिजानाति, लोक:, माम्_अजम्_अव्ययम् ॥ २५ ॥
ANAVYA
योगमायासमावृतः अहं सर्वस्य प्रकाश: न (भवामि), (अतः) अयं मूढ: लोक:
माम् अजम् अव्ययं न अभिजानाति।
माम् अजम् अव्ययं न अभिजानाति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
योगमायासमावृतः [((अपनी)) योगमाया से छिपा हुआ], अहम् [मैं], सर्वस्य [सब के], प्रकाश: [प्रत्यक्ष], न (भवामि) [नहीं होता,], {(अतः) [इसलिये]}, अयम् [यह], मूढ: [अज्ञानी], लोक: [संसार],
माम् [मुझ], अजम् [जन्म से रहित], अव्ययम् [अविनाशी परमेश्वर को], न [नहीं], अभिजानाति [जानता अर्थात् मुझको जन्मने-मरने वाला समझता है।],
माम् [मुझ], अजम् [जन्म से रहित], अव्ययम् [अविनाशी परमेश्वर को], न [नहीं], अभिजानाति [जानता अर्थात् मुझको जन्मने-मरने वाला समझता है।],
ANUVAAD
((अपनी)) योगमाया से छिपा हुआ मैं सबके प्रत्यक्ष नहीं होता, (इसलिये) यह अज्ञानी संसार
मुझ जन्म से रहित अविनाशी परमेश्वर को नहीं जानता अर्थात् मुझको जन्मने-मरने वाला समझता है।
मुझ जन्म से रहित अविनाशी परमेश्वर को नहीं जानता अर्थात् मुझको जन्मने-मरने वाला समझता है।