Chapter 7 – ज्ञानविज्ञानयोग Shloka-20
SHLOKA
कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया।।7.20।।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया।।7.20।।
PADACHHED
कामै:_तै:_तै:_हृत-ज्ञाना:, प्रपद्यन्ते_अन्य-देवता:,
तम्, तम्, नियमम्_आस्थाय, प्रकृत्या, नियता:, स्वया ॥ २० ॥
तम्, तम्, नियमम्_आस्थाय, प्रकृत्या, नियता:, स्वया ॥ २० ॥
ANAVYA
तै: तै: कामै: हृृतज्ञाना: (ते) स्वया प्रकृत्या
नियता: तं तं नियमम् आस्थाय अन्यदेवता: प्रपद्यन्ते।
नियता: तं तं नियमम् आस्थाय अन्यदेवता: प्रपद्यन्ते।
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तै: तै: [उन-उन], कामै: [((भोगों की)) कामना द्वारा], हृतज्ञाना: [जिनका ज्ञान हरा जा चुका है,], {(ते) [वे लोग]}, स्वया [अपने], प्रकृत्या [स्वभाव से],
नियता: [प्रेरित होकर], तम् तम् [उस-उस], नियमम् [नियम को], आस्थाय [धारण करके], अन्यदेवता: [अन्य देवताओं को], प्रपद्यन्ते [भजते हैं अर्थात् पूजते हैं ।],
नियता: [प्रेरित होकर], तम् तम् [उस-उस], नियमम् [नियम को], आस्थाय [धारण करके], अन्यदेवता: [अन्य देवताओं को], प्रपद्यन्ते [भजते हैं अर्थात् पूजते हैं ।],
ANUVAAD
उन-उन ((भोगों की)) कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, (वे लोग) अपने स्वभाव से
प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात् पूजते हैं।
प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात् पूजते हैं।