Chapter 7 – ज्ञानविज्ञानयोग Shloka-18
SHLOKA
उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्।
आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्।।7.18।।
आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्।।7.18।।
PADACHHED
उदारा:, सर्वे, एव_एते, ज्ञानी, तु_आत्मा_एव, मे, मतम्,
आस्थित:, स:, हि, युक्तात्मा, माम्_एव_अनुत्तमाम्, गतिम् ॥ १८ ॥
आस्थित:, स:, हि, युक्तात्मा, माम्_एव_अनुत्तमाम्, गतिम् ॥ १८ ॥
ANAVYA
एते सर्वे एव उदारा: (सन्ति), तु ज्ञानी आत्मा एव (अस्ति) (इति) मे मतम्, हि
स: युक्तात्मा अनुत्तमां गतिं माम् एव आस्थित:।
स: युक्तात्मा अनुत्तमां गतिं माम् एव आस्थित:।
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एते [ये], सर्वे एव [सभी], उदारा: (सन्ति) [उदार हैं,], तु [परंतु], ज्ञानी [ज्ञानी (तो साक्षात् )], आत्मा [मेरा स्वरूप], एव (अस्ति) [ही है-], {(इति) [ऐसा]}, मे [मेरा], मतम् [मत है;], हि [क्योंकि],
स: [वह], युक्तात्मा [मद्गत मन-बुद्धि वाला ((ज्ञानी भक्त))], अनुत्तमाम् [अति उत्तम], गतिम् [गतिस्वरूप], माम् [मुझमें], एव [ही], आस्थित: [अच्छी प्रकार स्थित हैं।],
स: [वह], युक्तात्मा [मद्गत मन-बुद्धि वाला ((ज्ञानी भक्त))], अनुत्तमाम् [अति उत्तम], गतिम् [गतिस्वरूप], माम् [मुझमें], एव [ही], आस्थित: [अच्छी प्रकार स्थित हैं।],
ANUVAAD
ये सभी उदार हैं, परंतु ज्ञानी (तो साक्षात्) मेरा स्वरूप ही है- (ऐसा) मेरा मत है; क्योंकि
वह मद्गत मन-बुद्धि वाला ((ज्ञानी भक्त)) अति उत्तम गतिस्वरूप मुझ में ही अच्छी प्रकार स्थित हैं।
वह मद्गत मन-बुद्धि वाला ((ज्ञानी भक्त)) अति उत्तम गतिस्वरूप मुझ में ही अच्छी प्रकार स्थित हैं।