Chapter 7 – ज्ञानविज्ञानयोग Shloka-17
SHLOKA
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः।।7.17।।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः।।7.17।।
PADACHHED
तेषाम्, ज्ञानी, नित्य-युक्त:, एक-भक्ति:_विशिष्यते,
प्रिय:, हि, ज्ञानिन:_अत्यर्थम्_अहम्, स:, च, मम, प्रिय: ॥ १७ ॥
प्रिय:, हि, ज्ञानिन:_अत्यर्थम्_अहम्, स:, च, मम, प्रिय: ॥ १७ ॥
ANAVYA
तेषां नित्ययुक्त: एकभक्ति: ज्ञानी विशिष्यते हि
ज्ञानिन: अहम् अत्यर्थं प्रिय: (अस्मि) च स: (ज्ञानी) मम प्रिय: (अस्ति)।
ज्ञानिन: अहम् अत्यर्थं प्रिय: (अस्मि) च स: (ज्ञानी) मम प्रिय: (अस्ति)।
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तेषाम् [उनमें], नित्ययुक्त: [नित्य मुझमें एकीभाव से स्थित], एकभक्ति: [अनन्य प्रेमभक्ति वाला], ज्ञानी [ज्ञानी ((भक्त))], विशिष्यते [अति उत्तम है;], हि [क्योंकि ((मुझको तत्व से जानने वाले))],
ज्ञानिन: [ज्ञानी को], अहम् [मैं], अत्यर्थम् [अत्यंत], प्रिय: (अस्मि) [प्रिय हूँ], च [और], स: (ज्ञानी) [वह (ज्ञानी)], मम [मुझे ((अत्यंत))], प्रिय: (अस्ति) [प्रिय है।]
ज्ञानिन: [ज्ञानी को], अहम् [मैं], अत्यर्थम् [अत्यंत], प्रिय: (अस्मि) [प्रिय हूँ], च [और], स: (ज्ञानी) [वह (ज्ञानी)], मम [मुझे ((अत्यंत))], प्रिय: (अस्ति) [प्रिय है।]
ANUVAAD
उनमें नित्य मुझ में एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेमभक्ति वाला ज्ञानी ((भक्त)) अति उत्तम है; क्योंकि ((मुझको तत्व से जानने वाले))
ज्ञानी को मैं अत्यंत प्रिय हूँ और वह (ज्ञानी) मुझे ((अत्यंत)) प्रिय है।
ज्ञानी को मैं अत्यंत प्रिय हूँ और वह (ज्ञानी) मुझे ((अत्यंत)) प्रिय है।