Chapter 6 – ध्यानयोग/आत्मसंयमयोग Shloka-9

Chapter-6_6.9

SHLOKA

सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु।
साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते।।6.9।।

PADACHHED

सुहृन्मित्रार्युदासीन-मध्यस्थ-द्वेष्य-बन्धुषु,
साधुषु_अपि, च, पापेषु, समबुद्धि:_विशिष्यते ॥ ९ ॥

ANAVYA

सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु साधुषु च
पापेषु अपि समबुद्धि: विशिष्यते।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु [सुहृद् मित्र, शत्रु, उदासीन, मध्यस्थ, द्वेष्य और बन्धुगणों में,], साधुषु [धर्मात्माओं में], च [और],
पापेषु [पापियों में], अपि [भी], समबुद्धि: [समान भाव रखने वाला], विशिष्यते [अत्यन्त श्रेष्ठ है।],

ANUVAAD

सुहृद् मित्र, शत्रु, उदासीन, मध्यस्थ, द्वेष्य और बन्धुगणों में, धर्मात्माओं में और
पापियों में भी समान भाव रखने वाला अत्यन्त श्रेष्ठ है।

Leave a Reply