SHLOKA
ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः।
युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चनः।।6.8।।
युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चनः।।6.8।।
PADACHHED
ज्ञान-विज्ञान-तृप्तात्मा, कूटस्थ:, विजितेन्द्रिय:,
युक्त:, इति_उच्यते, योगी, समलोष्टाश्म-काञ्चन: ॥ ८ ॥
युक्त:, इति_उच्यते, योगी, समलोष्टाश्म-काञ्चन: ॥ ८ ॥
ANAVYA
ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थ: विजितेन्द्रिय:
समलोष्टाश्मकाञ्चनः (च) (अस्ति) (सः) योगी युक्त: इति उच्यते।
समलोष्टाश्मकाञ्चनः (च) (अस्ति) (सः) योगी युक्त: इति उच्यते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा [जिसका अन्त:करण ज्ञान-विज्ञान से तृप्त है,], कूटस्थ: [जिसकी स्थिति विकार रहित है,], विजितेन्द्रिय: [जिसकी इन्द्रियाँ भलीभाँति जीती हुई हैं ],
समलोष्टाश्मकाञ्चनः (च) (अस्ति) [(और) जिसके लिये मिट्टी, पत्थर और सुवर्ण समान हैं,], (सः) योगी [ (वह) योगी], युक्त: [युक्त अर्थात् भगवत्प्राप्त है,], इति [ऐसा], उच्यते [कहा जाता है।],
समलोष्टाश्मकाञ्चनः (च) (अस्ति) [(और) जिसके लिये मिट्टी, पत्थर और सुवर्ण समान हैं,], (सः) योगी [ (वह) योगी], युक्त: [युक्त अर्थात् भगवत्प्राप्त है,], इति [ऐसा], उच्यते [कहा जाता है।],
ANUVAAD
जिसका अन्त:करण ज्ञान-विज्ञान से तृप्त है, जिसकी स्थिति विकार रहित है, जिसकी इन्द्रियाँ भलीभाँति जीती हुई हैं (और)
जिसके लिये मिट्टी,पत्थर और सुवर्ण समान हैं, (वह) योगी युक्त अर्थात् भगवत्प्राप्त है, ऐसा कहा जाता है।
जिसके लिये मिट्टी,पत्थर और सुवर्ण समान हैं, (वह) योगी युक्त अर्थात् भगवत्प्राप्त है, ऐसा कहा जाता है।