SHLOKA (श्लोक)
जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।।6.7।।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।।6.7।।
PADACHHED (पदच्छेद)
जितात्मन:, प्रशान्तस्य, परमात्मा, समाहित:,
शीतोष्ण-सुख-दु:खेषु, तथा, मानापमानयो: ॥ ७ ॥
शीतोष्ण-सुख-दु:खेषु, तथा, मानापमानयो: ॥ ७ ॥
ANAVYA (अन्वय-हिन्दी)
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयो: प्रशान्तस्य
जितात्मनः (पुरुषस्य) परमात्मा समाहित: (वर्तते)।
जितात्मनः (पुरुषस्य) परमात्मा समाहित: (वर्तते)।
Hindi-Word-Translation (हिन्दी शब्दार्थ)
शीतोष्णसुखदुःखेषु [सर्दी-गर्मी और सुख-दु:ख आदि में], तथा [तथा], मानापमानयो: [सम्मान और अपमान में], प्रशान्तस्य [((जिसके अन्त:करण की वृत्तियाँ)) भलीभाँति शान्त हैं, ((ऐसे))],
जितात्मनः (पुरुषस्य) [स्वाधीन आत्मा वाले (पुरुष) के ((ज्ञान में))], परमात्मा [सच्चिदानन्दघन परमात्मा], समाहित: (वर्तते) [सम्यक् प्रकार से स्थित हैं अर्थात् उसके ज्ञान में परमात्मा के सिवा अन्य कुछ है ही नहीं।],
जितात्मनः (पुरुषस्य) [स्वाधीन आत्मा वाले (पुरुष) के ((ज्ञान में))], परमात्मा [सच्चिदानन्दघन परमात्मा], समाहित: (वर्तते) [सम्यक् प्रकार से स्थित हैं अर्थात् उसके ज्ञान में परमात्मा के सिवा अन्य कुछ है ही नहीं।],
हिन्दी भाषांतर
सर्दी-गर्मी और सुख-दु:ख आदि में तथा सम्मान और अपमान में ((जिसके अन्त:करण की वृत्तियाँ)) भलीभाँति शान्त हैं, ((ऐसे))
स्वाधीन आत्मा वाले (पुरुष) के ((ज्ञान में)) सच्चिदानन्दघन परमात्मा सम्यक् प्रकार से स्थित हैं अर्थात् उसके ज्ञान में परमात्मा के सिवा अन्य कुछ है ही नहीं।
स्वाधीन आत्मा वाले (पुरुष) के ((ज्ञान में)) सच्चिदानन्दघन परमात्मा सम्यक् प्रकार से स्थित हैं अर्थात् उसके ज्ञान में परमात्मा के सिवा अन्य कुछ है ही नहीं।