SHLOKA
बन्धुरात्माऽऽत्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्।।6.6।।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्।।6.6।।
PADACHHED
बन्धु:_आत्मा_आत्मन:_तस्य, येन_आत्मा_एव_आत्मना, जित:,
अनात्मन:_तु, शत्रुत्वे, वर्तेत_आत्मा_एव, शत्रुवत् ॥ ६ ॥
अनात्मन:_तु, शत्रुत्वे, वर्तेत_आत्मा_एव, शत्रुवत् ॥ ६ ॥
ANAVYA
येन आत्मना आत्मा जित: तस्य आत्मनः आत्मा एव बन्धु: (अस्ति);
तु (येन) अनात्मन: (जितः), (तस्य) आत्मा एव शत्रुवत् शत्रुत्वे वर्तेत।
तु (येन) अनात्मन: (जितः), (तस्य) आत्मा एव शत्रुवत् शत्रुत्वे वर्तेत।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
येन [जिस], आत्मना [जीवात्मा द्वारा], आत्मा [मन और इन्द्रियों सहित शरीर], जित: [जीता हुआ है,], तस्य [उस], आत्मनः [जीवात्मा का ((तो वह))], आत्मा [आत्मा ((स्वयं))], एव [ही], बन्धु: (अस्ति) [मित्र है;],
तु [और], {(येन) [जिसके द्वारा]}, अनात्मन: (जितः) [ मन तथा इन्द्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है,], {(तस्य) [उसके लिये ((वह))]}, आत्मा [ आत्मा ((स्वयं))], एव [ही], शत्रुवत् [शत्रु के समान], शत्रुत्वे [शत्रुता में], वर्तेत [बरतता है।]
तु [और], {(येन) [जिसके द्वारा]}, अनात्मन: (जितः) [ मन तथा इन्द्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है,], {(तस्य) [उसके लिये ((वह))]}, आत्मा [ आत्मा ((स्वयं))], एव [ही], शत्रुवत् [शत्रु के समान], शत्रुत्वे [शत्रुता में], वर्तेत [बरतता है।]
ANUVAAD
जिस जीवात्मा द्वारा मन और इन्द्रियों सहित शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा का ((तो वह)) आत्मा ((स्वयं)) ही मित्र है;
और (जिसके द्वारा) मन तथा इन्द्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, (उसके लिये) ((वह)) आत्मा ((स्वयं)) ही शत्रु के समान शत्रुता में बरतता है।
और (जिसके द्वारा) मन तथा इन्द्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, (उसके लिये) ((वह)) आत्मा ((स्वयं)) ही शत्रु के समान शत्रुता में बरतता है।