SHLOKA
सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः।
सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते।।6.31।।
सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते।।6.31।।
PADACHHED
सर्व-भूत-स्थितम्, य:, माम्, भजति_एकत्वम्_आस्थित:,
सर्वथा, वर्तमान:_अपि, स:, योगी, मयि, वर्तते ॥ ३१ ॥
सर्वथा, वर्तमान:_अपि, स:, योगी, मयि, वर्तते ॥ ३१ ॥
ANAVYA
य: (पुरुषः) एकत्वम् आस्थित: सर्वभूतस्थितं मां भजति
स: योगी सर्वथा वर्तमान: अपि मयि (एव) वर्तते।
स: योगी सर्वथा वर्तमान: अपि मयि (एव) वर्तते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
य: (पुरुषः) [जो (पुरुष)], एकत्वम् [एकीभाव में], आस्थित: [स्थित होकर], सर्वभूतस्थितम् [सम्पूर्ण भूतों में ((आत्मरूप से)) स्थित], माम् [मुझ ((सच्चिदानन्दघन वासुदेव)) को], भजति [भजता है,],
स: [वह], योगी [योगी], सर्वथा [सब प्रकार से], वर्तमान: [बरतता हुआ], अपि [भी], मयि (एव) [मुझ में (ही)], वर्तते [बरतता है।]
स: [वह], योगी [योगी], सर्वथा [सब प्रकार से], वर्तमान: [बरतता हुआ], अपि [भी], मयि (एव) [मुझ में (ही)], वर्तते [बरतता है।]
ANUVAAD
जो (पुरुष) एकीभाव में स्थित होकर सम्पूर्ण भूतों में ((आत्मरूप से)) स्थित मुझ ((सच्चिदानन्दघन वासुदेव)) को भजता है,
वह योगी सब प्रकार से बरतता हुआ भी मुझ में (ही) बरतता है।
वह योगी सब प्रकार से बरतता हुआ भी मुझ में (ही) बरतता है।