SHLOKA
यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया।
यत्र चैवात्मनाऽऽत्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति।।6.20।।
यत्र चैवात्मनाऽऽत्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति।।6.20।।
PADACHHED
यत्र_उपरमते, चित्तम्, निरुद्धम्, योग-सेवया,
यत्र, च_एव_आत्मना_आत्मानम्, पश्यन्_आत्मनि, तुष्यति ॥ २० ॥
यत्र, च_एव_आत्मना_आत्मानम्, पश्यन्_आत्मनि, तुष्यति ॥ २० ॥
ANAVYA
योगसेवया निरुद्धं चित्तं यत्र उपरमते च यत्र
आत्मना आत्मानं पश्यन् आत्मनि एव तुष्यति।
आत्मना आत्मानं पश्यन् आत्मनि एव तुष्यति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
योगसेवया [योग के अभ्यास से], निरुद्धम् [निरुद्ध ((विशेष रुप से रोका हुआ))], चित्तम् [चित्त], यत्र [जिस अवस्था में], उपरमते [उपराम ((विषय से विराग)) हो जाता है], च [और], यत्र [जिस अवस्था में ((परमात्मा के ध्यान से शुद्ध हुई))],
आत्मना [सूक्ष्म बुद्धि द्वारा], आत्मानम् [परमात्मा को], पश्यन् [साक्षात् करता हुआ], आत्मनि [सच्चिदानंदघन परमात्मा में], एव [ही], तुष्यति [संतुष्ट रहता है।],
आत्मना [सूक्ष्म बुद्धि द्वारा], आत्मानम् [परमात्मा को], पश्यन् [साक्षात् करता हुआ], आत्मनि [सच्चिदानंदघन परमात्मा में], एव [ही], तुष्यति [संतुष्ट रहता है।],
ANUVAAD
योग के अभ्यास से निरुद्ध ((विशेष रुप से रोका हुआ)) चित्त जिस अवस्था में उपराम ((विषय से विराग)) हो जाता है और जिस अवस्था में ((परमात्मा के ध्यान से शुद्ध हुई))
सूक्ष्म बुद्धि द्वारा परमात्मा को साक्षात् करता हुआ सच्चिदानंदघन परमात्मा में ही संतुष्ट रहता है।
सूक्ष्म बुद्धि द्वारा परमात्मा को साक्षात् करता हुआ सच्चिदानंदघन परमात्मा में ही संतुष्ट रहता है।