SHLOKA
यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते।
निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा।।6.18।।
निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा।।6.18।।
PADACHHED
यदा, विनियतम्, चित्तम्_आत्मनि_एव_अवतिष्ठते,
निःस्पृह:, सर्व-कामेभ्य:, युक्त:, इति_उच्यते, तदा ॥ १८ ॥
निःस्पृह:, सर्व-कामेभ्य:, युक्त:, इति_उच्यते, तदा ॥ १८ ॥
ANAVYA
विनियतं चित्तं यदा आत्मनि एव अवतिष्ठते
तदा सर्वकामेभ्य: निःस्पृहः (पुरुषः) युक्त: इति उच्यते।
तदा सर्वकामेभ्य: निःस्पृहः (पुरुषः) युक्त: इति उच्यते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
विनियतम् [अत्यंत वश मे किया हुआ], चित्तम् [चित्त], यदा [जिस काल में], आत्मनि [परमात्मा में], एव [ही], अवतिष्ठते [भलीभाँति स्थित हो जाता है,],
तदा [उस काल में], सर्वकामेभ्य: [सम्पूर्ण भोगों से], निःस्पृहः (पुरुषः) [इच्छा से रहित (पुरुष)], युक्त: [योगयुक्त है,], इति [ऐसा], उच्यते [कहा जाता है।],
तदा [उस काल में], सर्वकामेभ्य: [सम्पूर्ण भोगों से], निःस्पृहः (पुरुषः) [इच्छा से रहित (पुरुष)], युक्त: [योगयुक्त है,], इति [ऐसा], उच्यते [कहा जाता है।],
ANUVAAD
अत्यंत वश मे किया हुआ चित्त जिस काल में परमात्मा में ही भलीभाँति स्थित हो जाता है,
उस काल में सम्पूर्ण भोगों से इच्छा से रहित (पुरुष) योगयुक्त है, ऐसा कहा जाता है।
उस काल में सम्पूर्ण भोगों से इच्छा से रहित (पुरुष) योगयुक्त है, ऐसा कहा जाता है।