SHLOKA
युञ्जन्नेवं सदाऽऽत्मानं योगी नियतमानसः।
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति।।6.15।।
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति।।6.15।।
PADACHHED
युञ्जन्_एवम्, सदा_आत्मानम्, योगी, नियत-मानस:,
शान्तिम्, निर्वाण-परमाम्, मत्संस्थाम्_अधिगच्छति ॥ १५ ॥
शान्तिम्, निर्वाण-परमाम्, मत्संस्थाम्_अधिगच्छति ॥ १५ ॥
ANAVYA
नियतमानस: योगी एवम् आत्मानम् सदा (मयि)
युञ्जन् मत्संस्थां निर्वाणपरमां शान्तिम् अधिगच्छति।
युञ्जन् मत्संस्थां निर्वाणपरमां शान्तिम् अधिगच्छति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
नियतमानस: [वश में किये हुए मन वाला], योगी [योगी], एवम् [इस प्रकार], आत्मानम् [आत्मा को], सदा [निरंतर], {(मयि) [मुझ ((परमेश्वर के स्वरुप)) में],
युञ्जन् [लगाता हुआ], मत्संस्थाम् [मुझमें रहने वाली], निर्वाणपरमाम् [परमानन्द की पराकाष्ठारूप], शान्तिम् [शान्ति को], अधिगच्छति [प्राप्त होता है।]
युञ्जन् [लगाता हुआ], मत्संस्थाम् [मुझमें रहने वाली], निर्वाणपरमाम् [परमानन्द की पराकाष्ठारूप], शान्तिम् [शान्ति को], अधिगच्छति [प्राप्त होता है।]
ANUVAAD
वश में किये हुए मन वाला योगी इस प्रकार आत्मा को निरंतर (मुझ ((परमेश्वर के स्वरुप)) में)
लगाता हुआ मुझ में रहने वाली परमानन्द की पराकाष्ठारूप शान्ति को प्राप्त होता है।
लगाता हुआ मुझ में रहने वाली परमानन्द की पराकाष्ठारूप शान्ति को प्राप्त होता है।