Chapter 6 – ध्यानयोग/आत्मसंयमयोग Shloka-1

Chapter-6_6.1

SHLOKA (श्लोक)

श्रीभगवानुवाच -
अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः।।6.1।।

PADACHHED (पदच्छेद)

श्रीभगवान् उवाच -
अनाश्रित:, कर्म-फलम्‌, कार्यम्‌, कर्म, करोति, य:,
स:, सन्न्यासी, च, योगी, च, न, निरग्नि:_न, च_अक्रिय: ॥ १ ॥

ANAVYA (अन्वय-हिन्दी)

श्रीभगवान् उवाच -
य: (पुरुषः) कर्मफलम्‌ अनाश्रित: कार्यं कर्म करोति, स: संन्यासी च योगी (अस्ति),
च निरग्नि: (संन्यासी) न (अस्ति) च अक्रियः (योगी) न (अस्ति)।

Hindi-Word-Translation (हिन्दी शब्दार्थ)

श्रीभगवान् उवाच - [श्री भगवान् ने कहा -], य: (पुरुषः) [जो (पुरुष)], कर्मफलम् [कर्म के फल का], अनाश्रित: [आश्रय न लेकर], कार्यम् [करने योग्य], कर्म [कर्म], करोति [करता है,], स: [वह], संन्यासी [संन्यासी], च [तथा], योगी (अस्ति) [योगी है;],
च [और ((केवल))], निरग्नि: [अग्नि का त्याग करने वाला] ,{(संन्यासी) [संन्यासी]}, न (अस्ति) [नहीं है], च [तथा (केवल)], अक्रियः [क्रियाओं का त्याग करने वाला], {(योगी) [योगी]}, न (अस्ति) [नहीं है।],

हिन्दी भाषांतर

श्री भगवान् ने कहा - जो (पुरुष) कर्म के फल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है;
और ((केवल)) अग्नि का त्याग करने वाला (संन्यासी) नहीं है तथा (केवल) क्रियाओं का त्याग करने वाला (योगी) नहीं है।

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