SHLOKA
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया।।4.6।।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया।।4.6।।
PADACHHED
अज:_अपि, सन्_अव्ययात्मा, भूतानाम्_ईश्वरः_अपि, सन्,
प्रकृतिम्, स्वाम्_अधिष्ठाय, सम्भवामि_आत्म-मायया ॥ ६ ॥
प्रकृतिम्, स्वाम्_अधिष्ठाय, सम्भवामि_आत्म-मायया ॥ ६ ॥
ANAVYA
(अहम्) अज: (च) अव्ययात्मा सन् अपि (च) भूतानाम् ईश्वरः सन्
अपि प्रकृतिं स्वां अधिष्ठाय आत्ममायया सम्भवामि।
अपि प्रकृतिं स्वां अधिष्ठाय आत्ममायया सम्भवामि।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
{(अहम्) [मैं ((श्रीकृष्ण))]}, अज: (च) [अजन्मा (और)], अव्ययात्मा [अविनाशीस्वरूप], सन् [होते हुए], अपि (च) [भी (तथा)], भूतानाम् [समस्त प्राणियों का], ईश्वरः [ईश्वर], सन् [होते हुए],
अपि [भी], प्रकृतिम् [प्रकृति को], स्वाम् [अपने], अधिष्ठाय [अधीन करके], आत्ममायया [अपनी योगमाया से], सम्भवामि [प्रकट होता हूँ।],
अपि [भी], प्रकृतिम् [प्रकृति को], स्वाम् [अपने], अधिष्ठाय [अधीन करके], आत्ममायया [अपनी योगमाया से], सम्भवामि [प्रकट होता हूँ।],
ANUVAAD
मैं ((श्रीकृष्ण)) अजन्मा (और) अविनाशीस्वरूप होते हुए भी (तथा) समस्त प्राणियों का ईश्वर होते हुए
भी प्रकृति को अपने अधीन करके अपनी योगमाया से प्रकट होता हूँ।
भी प्रकृति को अपने अधीन करके अपनी योगमाया से प्रकट होता हूँ।