Chapter 4 – ज्ञानकर्मसन्न्यासयोग Shloka-16

Chapter-4_4.16

SHLOKA

किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4.16।।

PADACHHED

किम्‌, कर्म, किम्_अकर्म_इति, कवय:_अपि_अत्र, मोहिता:,
तत्_ते, कर्म, प्रवक्ष्यामि, यत्_ज्ञात्वा, मोक्ष्यसे_अशुभात् ‌॥ १६ ॥

ANAVYA

कर्म किम्? (च) अकर्म किम् ? इति अत्र कवय अपि मोहिता: (अतः)
तत्‌ कर्म (अहम्) ते प्रवक्ष्यामि, यत्‌ ज्ञात्वा (त्वम्) अशुभात्‌ मोक्ष्यसे।

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कर्म [कर्म], किम्? (च) [क्या है ? (और)], अकर्म [अकर्म], किम्? [क्या है ?-], इति [इस प्रकार ((इसका))], अत्र [निर्णय करने में], कवय: [बुद्धिमान् पुरुष], अपि [भी], मोहिता: [मोहित हो जाते हैं। , {(अतः) [इसलिये]}, तत् [वह], कर्म [कर्म-तत्व] {(अहं) [मैं]}, ते [तुझे], प्रवक्ष्यामि [भलीभाँति समझाकर कहूँगा,], यत् [जिसे], ज्ञात्वा (त्वं) [जानकर (तुम)], अशुभात् [अशुभ से अर्थात् कर्मबन्धन से], मोक्ष्यसे [मुक्त हो जाओगे।],

ANUVAAD

कर्म क्या है ? (और) अकर्म क्या है ?- इस प्रकार ((इसका)) निर्णय करने में बुद्धिमान् पुरुष भी मोहित हो जाते हैं। (इसलिये)
वह कर्म-तत्व (मैं) तुझे भलीभाँति समझाकर कहूँगा, जिसे जानकर (तुम) अशुभ से अर्थात्‌ कर्मबन्धन से मुक्त हो जाओगे।

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