SHLOKA
न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।
न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति।।3.4।।
न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति।।3.4।।
PADACHHED
न, कर्मणाम्_अनारम्भात्_नैष्कर्म्यम्, पुरुष:_अश्नुते,
न, च, सन्न्यसनात्_एव, सिद्धिम्, समधिगच्छति ॥ ४ ॥
न, च, सन्न्यसनात्_एव, सिद्धिम्, समधिगच्छति ॥ ४ ॥
ANAVYA
पुरुष: न च कर्मणाम् अनारम्भात् नैष्कर्म्यं (योगनिष्ठां) अश्नुते न एव
(कर्मणः) सन्न्यसनात् सिद्धिं (सांख्यनिष्ठां) समधिगच्छति।
(कर्मणः) सन्न्यसनात् सिद्धिं (सांख्यनिष्ठां) समधिगच्छति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
पुरुष: [मनुष्य], न [न (तो)], कर्मणाम् [कर्मों का], अनारम्भात् [आरम्भ किये बिना], नैष्कर्म्यम् (योगनिष्ठां) [निष्कर्मता को (अर्थात् योग-निष्ठा को)], अश्नुते [प्राप्त होता है], च [और], न [न], एव [ही],
{(कर्मणः) [[कर्मो के केवल)]}सन्न्यसनात् [ त्यागमात्र से], सिद्धिम् (सांख्यनिष्ठां) [सिद्धि (सांख्यनिष्ठा को (ही))], समधिगच्छति [प्राप्त होता है |],
{(कर्मणः) [[कर्मो के केवल)]}सन्न्यसनात् [ त्यागमात्र से], सिद्धिम् (सांख्यनिष्ठां) [सिद्धि (सांख्यनिष्ठा को (ही))], समधिगच्छति [प्राप्त होता है |],
ANUVAAD
मनुष्य न तो कर्मों का आरम्भ किये बिना निष्कर्मता को (अर्थात् योग-निष्ठा को) प्राप्त होता है और न ही
(कर्मो के केवल) त्यागमात्र से सिद्धि (सांख्यनिष्ठा) को प्राप्त होता है|
(कर्मो के केवल) त्यागमात्र से सिद्धि (सांख्यनिष्ठा) को प्राप्त होता है|