Chapter 3 – कर्मयोग Shloka-3

Chapter-3_3.3

SHLOKA

श्री भगवानुवाच -
लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ।
ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्।।3.3।।

PADACHHED

श्रीभगवान् उवाच -
लोके_अस्मिन्_द्विविधा, निष्ठा, पुरा, प्रोक्ता, मया_अनघ,
ज्ञानयोगेन, साङ्ख्यानाम्‌, कर्मयोगेन, योगिनाम्‌ ॥ ३ ॥

ANAVYA

श्रीभगवान् उवाच -
(हे) अनघ! (अर्जुन) अस्मिन् लोके द्विविधा निष्ठा मया पुरा प्रोक्ता (तयोः)
साङ्ख्यानाम् (निष्ठा तु) ज्ञानयोगेन (भवति, च) योगिनाम् (निष्ठा तु) कर्मयोगेन (भवति)|

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श्रीभगवान् उवाच - [श्री भगवान् ने कहा -], अनघ [हे निष्पाप! ((पापरहित)) (अर्जुन)], अस्मिन् [इस], लोके [लोक में], द्विविधा [दो प्रकार की], निष्ठा [निष्ठा], मया [मेरे द्वारा], पुरा [पहले], प्रोक्ता [कही गयी है। {(तयोः) [उनमें से]},
साङ्ख्यानाम् (निष्ठा तु) [साङ्ख्ययोगियों-की (निष्ठा तो)], ज्ञानयोगेन (भवति, च) [ज्ञानयोग से (होती है, और)], योगिनाम् (निष्ठा तु) [योगियोंकी (निष्ठा तो)], कर्मयोगेन (भवति) [कर्मयोग से (होती है)।]

ANUVAAD

श्री भगवान् ने कहा - हे निष्पाप! ((पापरहित)) (अर्जुन) इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा मेरे द्वारा पहले कही गयी है। (उनमें से)
साङ्ख्ययोगियों-की (निष्ठा तो) ज्ञानयोग से (होती है, और) योगियों की (निष्ठा तो) कर्मयोग से (होती है)।

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