SHLOKA
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः।।3.18।।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः।।3.18।।
PADACHHED
न_एव, तस्य, कृतेन_अर्थ:, न_अकृतेन_इह, कश्चन,
न, च_अस्य, सर्व-भूतेषु, कश्चित्_अर्थ-व्यपाश्रय: ॥ १८ ॥
न, च_अस्य, सर्व-भूतेषु, कश्चित्_अर्थ-व्यपाश्रय: ॥ १८ ॥
ANAVYA
तस्य (महापुरुषस्य) इह न (तु) कृतेन कश्चन अर्थ: (वर्तते) (च) न अकृतेन एव (कश्चन अर्थः वर्तते) च सर्वभूतेषु (अपि) अस्य कश्चित् अर्थव्यपाश्रय: न (विद्यते)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
तस्य (महापुरुषस्य) [उस (महापुरुष का)], इह [इस लोक में], न (तु) [न (तो)], कृतेन [कर्म करने से], कश्चन [कोई], अर्थ: (वर्तते) [प्रयोजन (रहता है) (और)], न [न], अकृतेन [कर्मो के न करने से],
एव (कश्चन अर्थः वर्तते) [ही (कोई प्रयोजन रहता है)], च [तथा], सर्वभूतेषु [सम्पूर्ण प्राणियों में (भी)], अस्य [इसका], कश्चित् [किंचिन्मात्र भी], अर्थव्यपाश्रय: [स्वार्थ का सम्बन्ध], न (विद्यते) [नहीं (रहता)।],
एव (कश्चन अर्थः वर्तते) [ही (कोई प्रयोजन रहता है)], च [तथा], सर्वभूतेषु [सम्पूर्ण प्राणियों में (भी)], अस्य [इसका], कश्चित् [किंचिन्मात्र भी], अर्थव्यपाश्रय: [स्वार्थ का सम्बन्ध], न (विद्यते) [नहीं (रहता)।],
ANUVAAD
उस (महापुरुष का) इस लोक में न (तो) कर्म करने से कोई प्रयोजन (रहता है) (और) न कर्मो के न करने से
ही (कोई प्रयोजन रहता है) तथा सम्पूर्ण प्राणियों में (भी) इसका किंचिन्मात्र भी स्वार्थ का सम्बन्ध नहीं (रहता)।
ही (कोई प्रयोजन रहता है) तथा सम्पूर्ण प्राणियों में (भी) इसका किंचिन्मात्र भी स्वार्थ का सम्बन्ध नहीं (रहता)।