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Gita Chapter-2 Shloka-71

Chapter-2_2.71

SHLOKA

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2.71।।

PADACHHED

विहाय, कामान्_य:, सर्वान्_पुमान्_चरति, निःस्पृहः,
निर्मम: , निरहङ्कार:, सः, शान्तिम्_अधिगच्छति ॥ ७१ ॥

ANAVYA

य: पुमान् सर्वान् कामान् विहाय निर्मम: निरहङ्कार:
निःस्पृह: (च) चरति, सः शान्तिम्‌ अधिगच्छति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

य: [जो], पुमान् [पुरुष], सर्वान् [सम्पूर्ण], कामान् [कामनाओं को], विहाय [त्यागकर], निर्मम: [ममता से रहित,], निरहङ्कार: [अहंकार से रहित],
निःस्पृह: (च) [(और) स्पृहा से रहित हुआ], चरति [विचरता है,], सः [वही], शान्तिम् [शान्ति को], अधिगच्छति [प्राप्त होता है।],

ANUVAAD

जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्यागकर ममता से रहित, अहंकार से रहित (और)
स्पृहा से रहित हुआ विचरता है, वही शान्ति को प्राप्त होता है।

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