Chapter 2 – साङ्ख्ययोग Shloka-72

Chapter-2_2.72

SHLOKA (श्लोक)

एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति।
स्थित्वाऽस्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति।।2.72।।

PADACHHED (पदच्छेद)

एषा, ब्राह्मी, स्थिति:, पार्थ, न_एनाम्‌, प्राप्य, विमुह्मति,
स्थित्वा_अस्याम्_अन्त-काले_अपि, ब्रह्म-निर्वाणम्_ऋच्छति ॥ ७२ ॥

ANAVYA (अनव्या-हिन्दी)

(हे) पार्थ! एषा ब्राह्मी स्थिति: (अस्ति) एनां प्राप्य (योगी) (कदापि)
न विमुह्माति, (तथा) अन्तकाले अपि अस्यां स्थित्वा ब्रह्मनिर्वाणम्‌ ऋच्छति।

Hindi-Word-Translation (हिन्दी शब्दार्थ)

(हे) पार्थ! [हे अर्जुन!], एषा [यह], ब्राह्मी [ब्रह्म को प्राप्त पुरुष की], स्थिति: (अस्ति) [स्थिति है;], एनाम् [इसको], प्राप्य [प्राप्त होकर], {(योगी कदापि) [योगी कभी]},
न विमुह्माति [मोहित नहीं होता (और)], अन्तकाले [अन्तकाल में], अपि [भी], अस्याम् [इस ((ब्राह्मी स्थिति)) में], स्थित्वा [स्थित होकर], ब्रह्मनिर्वाणम् [ब्रह्मानन्द को], ऋच्छति [प्राप्त हो जाता है।],

हिन्दी भाषांतर

हे अर्जुन! यह ब्रह्म को प्राप्त पुरुष की स्थिति है; इसको प्राप्त होकर (योगी) (कभी)
मोहित नहीं होता (और) अन्तकाल में भी इस ((ब्राह्मी स्थिति)) में स्थित होकर ब्रह्मानन्द को प्राप्त हो जाता है।

Leave a Reply