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Chapter 2 – साङ्ख्ययोग Shloka-7

Chapter-2_2.7

SHLOKA

कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।2.7।।

PADACHHED

कार्पण्य-दोषोपहत-स्वभाव:, पृच्छामि, त्वाम्‌, धर्म-सम्मूढ-चेता:,
यत्_श्रेय: , स्यात्_निश्चितम्‌, ब्रूहि, तत्_मे,
शिष्य:_ते _अहम्‌, शाधि, माम्‌, त्वाम्‌, प्रपन्‍नम् ॥ ७ ॥

ANAVYA

(अतः) कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव: धर्मसम्मूढचेता: (च) (अहं) त्वां प्रच्छामि यत् निशाचितं श्रेय:
स्यात् तत् मे ब्रूहि; (हि) अहं ते शिष्य: (अस्मि), (अतः) त्वां प्रपन्नं मां शाधि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव: [कायरतारूप दोष से उपहत ((दूषित)) हुए स्वभाव वाला], धर्मसम्मूढचेता: (च) [(तथा) धर्म के विषय में मोहितचित्त हुआ], {(अहम्) [मैं]}, त्वाम् [आपसे], प्रच्छामि [पूछता हूँ ((कि))], यत् [जो ((साधन))], निशाचितम् [निश्चित], श्रेय: [कल्याणकारक],
स्यात् [हो,], तत् [वह], मे [मेरे लिये], ब्रूहि [कहिये;], {(हि) [क्योंकि]}, अहम् [मैं], ते [आपका], शिष्य: (अस्मि) [शिष्य (हूँ)], {(अतः) [इसलिये]}, त्वाम् [आपके], प्रपन्नम् [शरण में आये हुए], माम् [मुझको], शाधि [शिक्षा दीजिये],

ANUVAAD

(इसलिए) कायरतारूप दोष से उपहत ((दूषित)) हुए स्वभाव वाला (तथा) धर्म के विषय में मोहितचित्त हुआ (मैं) आपसे पूछता हूँ ((कि)) जो ((साधन)) निश्चित कल्याणकारक
हो, वह मेरे लिये कहिये; (क्योंकि) मैं आपका शिष्य हूँ (इसलिये) आपके शरण मे आये हुए मुझको शिक्षा दीजिये।

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