SHLOKA
यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम्।
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्।।2.32।।
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्।।2.32।।
PADACHHED
यदृच्छया, च_उपपन्नम्, स्वर्ग-द्वारम्_अपावृतम्,
सुखिन:, क्षत्रिया:, पार्थ, लभन्ते, युद्धम्_ईदृशम् ॥ ३२ ॥
सुखिन:, क्षत्रिया:, पार्थ, लभन्ते, युद्धम्_ईदृशम् ॥ ३२ ॥
ANAVYA
(हे) पार्थ! यदृच्छया उपपन्नं च अपावृतं स्वर्गद्वारं
ईदृशं युद्धं सुखिन: क्षत्रिया: (एव) लभन्ते।
ईदृशं युद्धं सुखिन: क्षत्रिया: (एव) लभन्ते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) पार्थ [हे पार्थ!], यदृच्छया [अपने-आप], उपपन्नम् [प्राप्त हुए], च [और], अपावृतम् [खुले हुए], स्वर्गद्वारम् [स्वर्ग के द्वाररूप],
ईदृशम् [इस प्रकार के], युद्धम् [युद्ध को], सुखिन: [भाग्यवान् ], क्षत्रिया: (एव) [क्षत्रिय लोग (ही)], लभन्ते [पाते हैं।],
ईदृशम् [इस प्रकार के], युद्धम् [युद्ध को], सुखिन: [भाग्यवान् ], क्षत्रिया: (एव) [क्षत्रिय लोग (ही)], लभन्ते [पाते हैं।],
ANUVAAD
हे पार्थ! अपने-आप प्राप्त हुए और खुले हुए स्वर्ग के द्वाररूप
इस प्रकार के युद्ध को भाग्यवान् क्षत्रिय लोग (ही) पाते हैं।
इस प्रकार के युद्ध को भाग्यवान् क्षत्रिय लोग (ही) पाते हैं।