Gita Chapter-2 Shloka-25
SHLOKA
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।।2.25।।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।।2.25।।
PADACHHED
अव्यक्त:_अयम्_अचिन्त्य:_अयम्_अविकार्य:_अयम्_उच्यते,
तस्मात्_एवम्, विदित्वा_एनम्, न_अनुशोचितुम्_अर्हसि ॥ २५ ॥
तस्मात्_एवम्, विदित्वा_एनम्, न_अनुशोचितुम्_अर्हसि ॥ २५ ॥
ANAVYA
अयम् (आत्मा) अव्यक्त: (अस्ति), अयम् (आत्मा) अचिन्त्य: (अस्ति), अयम् (आत्मा) अविकार्य: (च) उच्यते, तस्मात्
एनम् (आत्मानं) एवं विदित्वा (त्वम्) अनुशोचितुं न अर्हसि।
एनम् (आत्मानं) एवं विदित्वा (त्वम्) अनुशोचितुं न अर्हसि।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
अयम् (आत्मा) [यह (आत्मा)], अव्यक्त: (अस्ति) [अव्यक्त है,], अयम् (आत्मा) [यह (आत्मा)], अचिन्त्य: (अस्ति) [अचिन्त्य है,], {(च) [और]}, अयम् (आत्मा) [यह (आत्मा)], अविकार्य: [विकार से रहित], उच्यते [कहा जाता है।], तस्मात् [इसलिए )],
एनम् (आत्मानं) [इस (आत्मा) को], एवम् [उपर्युक्त प्रकार से], विदित्वा [जानकर], {(त्वम्) [तुम]}, अनुशोचितुम् [शोक करने के], न अर्हसि [योग्य नहीं हो, अर्थात् तुझे शोक करना उचित नहीं है।]',
एनम् (आत्मानं) [इस (आत्मा) को], एवम् [उपर्युक्त प्रकार से], विदित्वा [जानकर], {(त्वम्) [तुम]}, अनुशोचितुम् [शोक करने के], न अर्हसि [योग्य नहीं हो, अर्थात् तुझे शोक करना उचित नहीं है।]',
ANUVAAD
यह (आत्मा) अव्यक्त है, यह (आत्मा) अचिन्त्य है, (और) यह आत्मा विकार से रहित कहा जाता है। इसलिए
इस (आत्मा) को उपर्युक्त प्रकार से जानकर (तुम) शोक करने के योग्य नहीं हो, अर्थात् तुझे शोक करना उचित नहीं है।
इस (आत्मा) को उपर्युक्त प्रकार से जानकर (तुम) शोक करने के योग्य नहीं हो, अर्थात् तुझे शोक करना उचित नहीं है।