Chapter 2 – साङ्ख्ययोग Shloka-24

Chapter-2_2.24

SHLOKA

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः।।2.24।।

PADACHHED

अच्छेद्य:_अयम्_अदाह्म:_अयम्_अक्लेद्य:_अशोष्य:, एव, च,
नित्य:, सर्व-गत:, स्थाणु:_अचल:_अयम्‌, सनातन: ॥ २४ ॥

ANAVYA

(यतः) अयम् (आत्मा) अच्छेद्य:, अयम् (आत्मा) अदाह्म: अक्लेद्य: च एव अशोष्य: (अस्ति)
(च) अयं (आत्मा) नित्य: सर्वगत: अचल: स्थाणुः सनातन: (च) (अस्ति)।

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{(यतः) [क्योंकि]}, अयम् (आत्मा) [यह (आत्मा)], अच्छेद्य: [अच्छेद्य ((विभाग न करने योग्य)) है;], अयम् (आत्मा) [यह (आत्मा)], अदाह्म: [अदाह्म ((जिसे जलाया न जा सके)),], अक्लेद्य: [अक्लेद्य ((जिसे भिगाया न जा सके))], च [और], एव [निःसंदेह], अशोष्य: (अस्ति) [अशोष्य ((जिसे सुखाया न जा सके)) है],
(च) अयम् (आत्मा) [(तथा) यह (आत्मा)], नित्य: [नित्य], सर्वगत: [सर्वव्यापी,], अचल: [अचल,], स्थाणु; [स्थिर रहने वाला], सनातन: (च अस्ति) [(और) सनातन है।],

ANUVAAD

(क्योंकि) यह (आत्मा) अच्छेद्य ((विभाग न करने योग्य)) है; यह (आत्मा) अदाह्य ((जिसे जलाया न जा सके)), अक्लेद्य ((जिसे भिगाया न जा सके)) और निःसंदेह अशोष्य ((जिसे सुखाया न जा सके)) है (तथा)
यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला (और) सनातन है।

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